जालौर जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर सायला अपनी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत को लेकर जिले भर में अपनी पहचान रखता है। सायला उपखण्ड मुख्यालय है जिसका दायरा 40 ग्राम पंचायतों से मिला हुआ है। सभी पंचायते पूर्णरूपेण ग्रामीण व कृषि सलंग्न अर्थव्यवस्था से ताल्लुक रखती है यानि कि सामान्य जन मानविकी की एप्रोच है।
असल बात शिक्षा की है। हमारा जिला वैसे तो पूरे राज्य भर में शैक्षणिक दृष्टि से अंतिम पायदान पर है और जिले में भी सायला अंतिम पायदान पर है। कुल मिलाकर हम शैक्षणिक दृष्टि से काफी हद तक पीछे है चाहे वो महिला शिक्षा हो या पुरुष शिक्षा।
बात यह है कि राजस्थान की वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री महोदय ने कल भिन्न-भिन्न जिलों में 25 नए महाविद्यालयो की घोषणा की। जिसमें पिछले वर्षों की उम्मीदों की नजर से देखे तो सायला का नाम फिर से नही है।
ख़ैर ! यह राजनीतिक मुद्दा है लेकिन इसे समझना जरूरी है।
वर्तमान से लेकर पूर्व की सरकारों के कार्यकालों तक यह अनदेखी होती आ रही है कि हमे राजकीय महाविद्यालय आज तक नही मिला। पिछली सरकार में केंद्र व विधानसभा क्षेत्र दोनों में भाजपा शासन में थी लेकिन फिर भी हमे कॉलेज नही मिला और ऐसा ही इससे पुर्व की कांग्रेस की सरकार में भी हुआ जब विधायक भी कांग्रेसी था व सरकार भी कांग्रेस की थी तब भी निराशा। हमारे जनप्रतिनिधियों को इस बारे में थोड़ा सोचना होगा और हमे उन तक यह जरूरत पहुंचानी होगी।
सायला को राजकीय महाविद्यालय की जरूरत है । जिला मुख्यालय से लेकर ठेट बाड़मेर सीमा तक सटे जिले के अंतिम गांव के बीच की दूरी 100 किमी से अधिक की है। उस गांव का किसान अपनी बेटी को बारहवीं तक तो पढा लेता है लेकिन उच्च शिक्षा के लिए वो इतना दूर नही भेज पाता। इधर भीनमाल भी अधिकतर दूरी पे स्थिति है। जिसके चलते ज्यादातर बालिकाएं अपनी शिक्षा को बीच में ही ड्राप कर देती है। सिलसिला चलता आ रहा है.. सभी ग्राम पंचायतों में यही स्थिति होगी गर विश्लेषण किया जाए तो।साथ ही हमने महाविद्यालय प्राप्त करने के सारे शैक्षणिक व भौगोलिक मानदण्ड पूरे कर लिए है।
कुल मिलाकर राजनीति लाभ व हित के चलते हमारी बुनियादी जरूरते छूटती जा रही है। सोचना होगा हमें ! अपने शैक्षणिक स्तर के बारे में और अपने स्तर की जरूरतों के बारे में, वरना राजनीतिक दलों के सदस्यता अभियान हो या फ़िर रैलिया,सभी चार दिन की चांदनी है। हमे इतनी बड़ी व्यवस्था मिली है। हमारे सायला के अच्छे अच्छे लोग दोनों दलों में विभिन्न प्रदेश स्तर के पदों पर भी है।
गर हम अपने राष्ट्र की आकांक्षाओं को सुदृढ़ करने की सोचते है तो हमें राष्ट्र के सबसे निचले स्तर गांव की जरूरतों के बारे में भी सोचना चाहिए। यदि ज्यादा जानकारी चाहिए तो महात्मा गांधी जी की ग्रामीण अवधारणा पढ़ी जाए।
एक शिक्षा ही है जिससे कोई भी व्यक्ति अपने किरदार को खुशबूदार बना सकता है और पीढ़ी को सक्षम। इसलिए सतत और संपोषणीय विकास की उम्मीदों को जोर दीजिए। पीढियां याद रखेगी। सच्चा लोकतंत्र यही आशा करता है।
दलगत राजनीति व आपसी द्वंद्व से परे जाकर क्षैत्र के बारे में विश्लेषण कीजिए।
जय सायला !
- ©शौक़त अली खान
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