जिंदगी में मुहब्बत का रुतबा इतना है कि सारी ख्वाहिशें, और सपने उसके आगे बौने है. इंसान की अंतिम सांस और यहां तक कि रूह निकल जाने के बाद नश्वर शरीर से भी मुहब्बत रहती है
मुहब्बत का कोई रूप नहीं होता,उसका अपना ब्रांड है, हमेशा आबाद रहती है. इससे जुड़ने के लिए त्याग,तपस्या,और अपनापन चाहिए.
मुहब्बत ! से वाबस्ता रखने वाले अपनी जिंदगी से बेहतरीन किरदार होते है...
अलविदा ! दिलीप कुमार (यूसुफ साहब)
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