संघवाद पर काले बादल !
आज हमारे देश में संघवाद उस दौर से गुजर रहा हैं जिसमे राज्यों की शक्तियों पर
काले घन छा रहे हैं तथा राज्यों का आंतरिक लोकतंत्र शर्मसार हो रहा हैं |
उत्तराखंड में लगा राष्ट्रपति शासन इसका उदाहरण हैं| हमारे सविंधान निर्माताओं ने
दूरदृष्टि सोच के साथ राज्यों को जो असीम शक्तियाँ केंद्र के समान दी ,उनकी अनदेखी
हो रही हैं | केंद्र राष्ट्रपति का गलत इस्तेमाल कर रहा हैं, हाल ही मैं नेनीताल
उच्च न्यायालय द्वारा जो टिप्पणियाँ की गयी उससे हम इस बात का अंदाजा लगा सकते
हैं| हम जानते हैं कि केन्द्रीय केबिनेट यदि किसी मुद्दे पर बैठक बुलाकर किसी प्रस्ताव
को पारित कर ,राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करती हैं और राष्ट्रपति उससे सहमत नही
हो तो उसे पुनर्विचार के लिए केबिनेट के पास भेजता हैं, केबिनेट दोबारा उस मुद्दे
पर विचार कर पुनः राष्ट्रपति के पास भेजती हैं तो राष्ट्रपति को उस पर हस्ताक्षर
करने को बाध्य हो जाता हैं यानि कि अंतिम शक्ति केंद्र सरकार के पास| हम
निष्कर्ष तक पहुँच कर यह पता लगा सकते हैं
कि मौजूदा दौर में राज्य की शक्तियाँ दिनों –दिन कमजोर होती जा रही हैं, जिसका
निशाना जनता बन रही हैं ,एक सप्ताह का यह शासन जनता के विकास कार्यो में खलल डाल
जाता हैं| देश की न्यायपालिका कब तक इन मुद्दो पर समीक्षा करेगी ,उसके पास तो
पूर्व में ही ढेर सारे प्रकरण लम्बित पड़े हुए हैं अर्थात् संघवाद की शक्तियों को
समझ कर उस पर पुनः विचार करने का कार्य केंद्र का हैं वरन राज्य कमजोर होते
जायेंगे तथा एक दिन लोकतंत्र खतरे का निशाना बन सकता हैं |
अशेष शुभकामनाओं के साथ ..............
शौकत अली खान ,तेजा की बेरी
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