ज़िन्दगी ढ़लती रही, मैं नज़्म बनती रही
उनकी ख़्वाहिश पर, मैं ग़ज़ल बनती रही !
रोज़ नयी सूरत कहाँ से लाऊँ बताएँ ज़रा
जब भी मिले हैं वो, मैं तस्वीर बनती रही !
ख़बर मुझे भी है कि वो इश्क करते नहीं
ख्वाब ही सही मगर, मैं नादान बनती रही !
काँधा देंगे वो जब फ़ना हो जाऊँगी जहां से
जीकर उनके क़दमों की, मैं धूल बनती रही !
जब भी पुकारा उनको रहे डूबे गैरों में वो
उनकी हर एक चाह पे, मैं ख़ाक बनती रही !
इश्क की ताज़ीर होती है अज़ब देखो 'शब'
ख़ता उनकी मगर, मैं गुनहगार बनती रही !
उनकी ख़्वाहिश पर, मैं ग़ज़ल बनती रही !
रोज़ नयी सूरत कहाँ से लाऊँ बताएँ ज़रा
जब भी मिले हैं वो, मैं तस्वीर बनती रही !
ख़बर मुझे भी है कि वो इश्क करते नहीं
ख्वाब ही सही मगर, मैं नादान बनती रही !
काँधा देंगे वो जब फ़ना हो जाऊँगी जहां से
जीकर उनके क़दमों की, मैं धूल बनती रही !
जब भी पुकारा उनको रहे डूबे गैरों में वो
उनकी हर एक चाह पे, मैं ख़ाक बनती रही !
इश्क की ताज़ीर होती है अज़ब देखो 'शब'
ख़ता उनकी मगर, मैं गुनहगार बनती रही !
0 Comments