बस , यही नाम काफी हैं
वात्सल्य को चेहरा देने के लिए|
इत्मीनान की साँस के मायने समझने .....
और हक से हक जताने के लिए |
थकन को भूल जाने,
और पैर समेटकर सोने का सुकून पाने के लिए
गर्मागर्म भोजन का सुख समझने ,
और आचार, मुरब्बे, चटनी के चटखारों के आनन्द के
लिए|
उम्र अहसास से परे जाकर
हाथ से निवाला खाने के चिर बालपनी सुख के लिए|
गोद में सर रखकर घंटो बतियाने,
बिना सोचे-समझे कुछ कह पाने के लिए|
जीते कंचे ,लुटी पतंगे छुपाने,
और हर राज बता देने के भरोसे के लिए |
कभी-भी ठुनकने, रूठने,
और सचमुच, खुलकर आंसू बहाने की निश्चितंता के लिए |
और जब छल के आक्रमणों की आशंका सताए,
तब ऐतबार को केवल इसी नाम से पुकारने के लिए
माँ ......
यही नाम काफी हैं
बचपन
की वादिय जब फिर से हिलोरे मारती हैं तब हमे माँ के साथ बिताये बचपन की याद आती
हैं , मदर्स डे पर ब्रम्हाण्ड पर विधमान समस्त माँ ओ को मेरा सलाम !
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