पारदर्शिता के सुप्रीम यौद्धा जस्टिस चेलमेश्वर....



          सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जे. चेलमेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम बैठकों में भाग लेने से साफ-साफ इनकार कर दिया हैं जो जस्टिस चेलमेश्वर के द्वारा लिखे गये पत्र से साबित होता हैं| जजों क नियुक्तियों से संबंधित वर्तमान व्यवस्था में पारदर्शिता का नितांत आभाव हैं जिसके अंतर्गत विचार-विमर्श और संवाद को केंद्र के साथ प्रक्रिया के ज्ञापन/ एमओपी ( मेमोरेंडम ऑफ़ प्रोसीजर) के तहत गोपनीय रखा जाता हैं| पूर्ववर्ती दिनों की ओर हम सिहांवलोकन करे तो देखेंगे कि पिछले दो वर्षो से केंद्र सरकार और न्यायपालिका के मध्य संघर्ष में न्यायपालिका ने केंद्र द्वार गठित न्यायिक नियुक्ति आयोग को ख़ारिज कर दिया था तथा वर्तमान कॉलेजियम व्यवस्था को बरक़रार रखा जिसमे सरकार की किरकरी मानी गयी| इसी बीच जस्टिस चेलमेश्वर ने वर्तमान कॉलेजियम व्यवस्था की कमियों को उजागर किया हैं|
                   जजों की नियुक्ति के संबंध में जस्टिस चेलमेश्वर बताया कि इसमें जजों की वरिष्ठता को नजर अंदाज किया जाता हैं साथ ही गोपनीय तरीके से नियुक्तियों की अनुशंषा को केंद्र के पास भेजा जाता हैं जिस पर केंद्र को मौहर लगानी होती हैं| इसी बीच केंद्र सरकार के नाजुक कंधों को जस्टिस चेलमेश्वर का सहयोग मिल गया हैं|  केंद्र ने न्यायिक नियुक्ति आयोग के सन्दर्भ में कहा हैं कि देश जजों की नियुक्ति के लिए संसद को सर्वमान्य मानता हैं जिसे(संसद) देश में लोकतान्त्रिक होने का गौरव हासिल हैं जिसके द्वारा पारदर्शिता, वरिष्ठता और उन्नति-उत्कृष्टता के आधार पर जनता की जनमत गवाई के साथ देश के न्यायधीशों की नियुक्ति की जाएगी |
           जस्टिस जे.चेलमेश्वर ने अपने पत्र में बताया हैं कि कॉलेजियम की बैठको में भाग लेने का कोई औचित्य नही हैं | अक्टूम्बर 2015 में ख़ारिज किये गये न्यायिक नियुक्ति आयोग के सन्दर्भ में पाँच सदस्यीय बैंच ने कहा था कि कॉलेजियम की पारदर्शीता में सुधार की आवश्यकता हैं लेकिन सुप्रीम न्यायालय के इतिहास में जजों की नियुक्ति को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए जस्टिस चेलमेश्वर ने कॉलेजियम के विरुद्ध जंग छेड़ दी हैं | सरकार ने अपने प्रतिउत्तर में कहा हैं कि जजों की नियुक्ति का वीटो पॉवर भी हमारे पास होना चाहिए जिसके तहत किसी भी जज को,जिसकी नियुक्ति के लिए अनुशंसा हई हैं राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर ख़ारिज कर सकती हैं जिससे इस उपनियम में जजों की नियुक्ति के सन्दर्भ में कार्यपालिका सर्वोपरी हो जाएगी
       जब हम हमारे संवैधानिक इतिहास की ओर सिहावलोकन करे तो देखेंगे कि हमारे संविधान निर्माताओं ने न्यायपालिका को स्वतन्त्रता प्रदान की थी जिसमे उनकी दूरदर्ष्टि सोच ने कहा था कि कोई भी न्यायाधीश राजनीतिक असंलग्ता के साथ न्याय करेगा |

---शौकत अली खान, जालौर (राजस्थान)

     

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