भारत की लोकतान्त्रिक पद्धति का प्रमुख आधार ही जनता हैं इसका आस्था
इस व्यवस्था पर विश्वास बना रहना अत्यंत जरुरी हैं | जनता चाहती हैं कि देश स्वच्छ,
निष्पक्ष और भ्रष्टाचाररोधी रहे, इसके लिए वह अनेक आशाओं के साथ इस पद्धति को
संचालित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं| लेकिन इससे परे देखा जाये तो
भारतीय समाज में अनेक ऐसे तत्व मौजूद हैं जो देश में सशक्त लोकतान्त्रिक व्यवस्था
स्थापित करने के लिए किसी चुनौती से कम नही हैं, जिनमें भ्रष्टाचार सर्वप्रमुख हैं|
21 दिसम्बर 1963 को संसद बहस के
दौरान डॉ.राममनोहर लोहिया ने जो भाषण दिया वो आज भी प्रासंगिक होता नजर रहा हैं उन्होंने
कहा था कि “सिंहासन और व्यापार के बीच सम्बन्ध भर में दूषित ,भ्रष्ट, और बेईमान हो
गया हैं उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नही हुआ”| देश में जब भ्रष्टाचाररोधी
संस्थाए जब भी किसी करवाई को अंजाम देती हैं तो उसे राजनैतिक रूप देकर राष्ट्र में
बहस छेड़ दी जाती हैं जो शर्मनाक हैं तथा उसे राजनैतिक द्वेषता करार देकर सरकार को
कोशा जाता हैं| देश में आजादी के बाद अनेक
बड़े घोटाले हुए लेकिन उस पर होने वाली कारवाई उतनी बड़ी नही हुई हैं |
अब वक्त आ गया हैं इसपर लगाम
लगाने का वरन जो भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने
का जो सपना देखा हैं वो पलभर में भस्म हो जाएग | जब सरकार भ्रष्ट हो तो जनता की
उर्जा भटक जाती हैं तथा जिसका परिणाम बुरा होता हैं | 2016 में ट्रांसपेरेंसी
इन्टर नेशनल द्वारा जारी रिपोर्ट में 176 की सूचि में भारत को 79 स्थान पर रखा था तथा
रिपोर्ट के अनुसार भारत का लगातार कमजोर प्रदर्शन बताता हैं कि राज्य की मशीनरी भ्रष्टाचार
और बड़े घोटालें को प्रभावी तरीके से रोकने में सक्षम साबित नही हो रही हैं और कहा
गया कि अर्थव्यवस्था के साथ-साथ असमानता भी तेजी से बढ़ रही हैं जिसका प्रमुख कारण
हैं, भ्रष्टाचार |
हाल ही में जब सीबीआई ने अपनी करवाई में अनेक नेताओं को कटघरे में
लिया जो सीधे-सीधे भ्रष्टाचार में लिप्त हैं यह अच्छा कार्य हैं लेकिन विपक्ष ने
सरकार को इसे बदनाम करने वाला बताया हैं ; मैं जरा उन्ही नेताओं को पूछना चाहता
हूँ कि जब वे सत्ता में थे या होंगे क्या वो अपने विपक्ष के नेताओं पर होने वाली भ्रष्टाचार
की करवाई को को नही करेंगे?
देश में मौजूद समस्त भ्रष्टाचार रोधी संस्थाए गर राजनैतिक तटस्था के
साथ कार्य करे तो इस पर दिर्घामी लगाम लगाया जा सकता हैं इसकी जड़े अत्यंत गहरी हो
चुकी हैं क्योंकि मशीनरी हर और से इसे रोकने में नाकाम साबित हो रही हैं | सीबीआई
और सतर्कता आयोग को मिल-झूलकर कार्य करना होगा| इसके लिए भ्रष्टाचार निवारण
अधिनियम 1988 को और अधिक मजबूत करने के साथ-साथ सूचनाके अधिकार को देश भर में
व्यापक रूप दिया जाए|
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