शुक्रवार को भारत ने
दक्षिण एशिया संचार उपग्रह (जीएसएलवी–एफ09)का सफलतापूर्वक प्रेक्षपण किया हैं तथा जिसका
सम्पूर्ण वित्त पोषण भारत सरकार के द्वारा किया गया| भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन(इसरो)
द्वारा निर्मित इस नवीनतम संचार उपग्रह को एसएमएस रोड पिग्गीबैक कहा जाता हैं|
प्रधानमंत्री ने इसे दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशो के लिए अमूल्य उपहार बताते हुए
इसे ऐतिहासिक क्षण बताया हैं| जिसका प्रमुख उद्देश्य दक्षिण एशिया क्षेत्र के देशो
को संचार और आपदा सहयोग मुहैया कराना हैं | इस मिशन में पाकिस्तान ने स्वयं की
परमाणु कार्यक्रम नीति बताकर इससे किनारा कर दिया था|
बेशक ! इससे देश की
बढती अन्तरिक्ष प्रोद्योगिकी को नई दिशा मिली हैं साथ
देश की बदलती विदेश नीति में भी बड़ा बदलाव आएगा तथा वैश्विक पटल पर हिंदुस्तान का
प्रभाव बढ़ेगा | भारत की “पड़ोस पहले की नीति” में भी एक नया बिंदु जुड़ गया हैं क्योंकि
इससे परे किसी भी मुल्क ने अपनी स्पेस प्रोद्योगिकी से अपने सहयोगी राष्ट्रों के
विकास के लिए यह नीति नही अपनाई हैं| स्पेस टेकनोलोजी से लबरेज चीन की स्पेस
डिप्लोमेसी को भी यह एक करार जवाब हैं तथा दक्षिण एशिया में इसके बढ़ते कदम को भी
रोका जाना हैं | वैश्विक आतंकवाद तथा भारत में भी बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों से
निपटने के लिए दक्षिण एशिया के देशो को एकजुट करने की जरूरत थी जिससे भारत के
द्वारा ठोस रणनीति के साथ आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाई जाए क्योंकि दक्षिण एशिया के
अधिकतर देश इस दंश के शिकार हैं| निसंदेह: वैश्विक खतरे से मुक्त होने लिए भारत की
यह ‘स्पेस उपहार नीति’ मील का पत्थर साबित होगी|
दक्षिण एशिया के अधिकतर
राष्ट्रों की भौगोलिक अवस्थिति पहाड़ी इलाकों से आच्छादित हैं जहाँ संचार सुविधा
उपलब्ध होने में बाधा उत्पन होती थी तथा आपदा की व्यापक संभावनाओं का बना रहना
स्वाभाविक था जिसमें भूटान और नेपाल प्रमुख देश हैं| 2015 में नेपाल में आये
भूकम्प से उसे व्यापक मात्रा में जनहानि हुई जिसके बाद से ही नेपाल को इस संचार सुविधा
का बड़ी शिद्धत से इंतजार था| इससे इन राष्ट्रों को संचार प्रोद्योगिकी का फायदा
मिलेगा तथा प्राकृतिक आपदाओं के दौरान कम्युनिकेशन बढ़ेगा जिससे कि लोगो की त्वरित
मदद की जा सकेगी| अफगनिस्तान के पास संचार उपग्रह (अफगानसैट) भारत द्वारा ही
निर्मित हैं जिसके कारण इसने साऊथ एशिया सैटलाइट डील पर हस्ताक्षर नही किए हैं |
स्पेस प्रोद्योगिकी में बांग्लादेश ने तो अभी शुरुआत ही की थी इसे भी भारत के इस
उपग्रह से बल मिलेगा |श्रीलंका भी 2012 में अपना पहला संचार उपग्रह लांच कर चूका
हैं लेकिन साऊथ एशिया सेटेलाइट से उसे अपनी क्षमताओं में इजाफा करने में अनुपम
अवसर मिलेगा | भूटान तो इस तकनीकी से अनछुआ हैं | हिन्द महासागर में मोतियों की
तरह बिखरे राष्ट्र मालदीव के पास तो स्पेस से सम्बन्धित टेकनोलोजी के नाम पर कुछ
भी नही था लेकिन भारत द्वारा प्रक्षेपित यह संचार उपग्रह उसके लिए ईद का चाँद होगा
तथा उस पर मंडरा रहे प्राकृतिक संकट से पूर्वानुमान मिलेगा |
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