देश में नए राज्यों को लेकर मांगे तीव्र होती जा रही हैं| अलग राज्य को लेकर गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के सुभाष घिसिंग के द्वारा पहली बार 5 अप्रैल1980 को मांग उठाई गयी| गोरखालैंड की मांग एक बार फिर साठ के दशक की याद दिला रही हैं जब देश नव-स्वतंत्र हुआ और देश की एकता और अखंडता कायम करना सबसे बड़ी चुनौती थी इसी बीच 1960 में भाषा के आधार पर देश में दो राज्यों का बंटवारा हुआ| अलग राज्यों को बनाने की चिंगारियां आज तक भटक रही हैं जिसका परिणाम जनकल्याण और राष्ट्रीय प्रगति के दृष्टिकोण से अत्यंत घातक हैं|
गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर समर्थन कर रहे गोरखन नेशनल लिबरेशन फ्रंट(जीएनएलएफ) के रोशन गिरी ने दार्जिलिंग,जलपाईगुड़ी और कुच बिहार को मिलाकर गोरखालैंड राज्य बनाने को लेकर आन्दोलन शुरू किया और कहा कि यह हमारी अस्मिता का सवाल है| विमल गुरुंग का कहना हैं कि गोरखालैंड टेरिटोरीयल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) को समझौते के मुताबिक विभाग नही सौपे गए | पांच साल बीतने के बावजूद न तो पूरा अधिकार मिला न ही पैसा| भाषा,संस्कृति और रीती रिवाजो में अंतर के बावजूद भी हमे नेपाली कहा जाता हैं एंव हम पर जबरन बांग्ला भाषा थोपी जा रही हैं | राज्य सरकार और इनके मध्य हुए समझौतों की क्रियान्विति को लेकर समय-समय पर मतभेदों की स्थितियों ने जन्म लिया|
संकुचित क्षेत्रीय स्वार्थों की पूर्ति को लेकर देश में समय –समय पर अलग राज्यों को लेकर मांगे उठाई जा रही हैं जिसकों को रोकना होगा वरन विघटनकारी प्रवृतियां को प्रोत्साहन मिलेगा | एक बार फिर भाषा के प्रश्न को लेकर देश में हिंसात्मक आन्दोलन हो रहे हैं जिसके कारण देश की एकता पर संकट हैं | जहाँ तक कानून का सम्बन्ध हैं ,16 वें संविधान संशोधन के आधार पर व्यवस्था की गई हैं किकोई भी व्यक्ति व संगठन भारत की एकता और अखंडता के विरुद्ध कार्य नही कर सकता | केंद्र को इसको लेकर एक उचित कदम उठाना होगा| हम देख चुके हैं उत्तर व दक्षिण भारत में भाषा को लेकर अनेक हिंसात्मक गतिविधिया हुई| भाषा को राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयुक्त करने की बढती हुई प्रवृति को रोकने की जरूरत हैं| भाषा सम्बन्धी झगड़ों का हल शीघ्र ढूँढ लिया जाए, इस सम्बन्ध में सबसे उचित हल यह हैं कि सभी क्षेत्रीय भाषाओँ को समान मान्यता प्रदान की जाए | रजनी कोठारी का मानना कि सिर्फ भाषा को आधार बनाकर राज्यों का पुनर्गठन नही करना चाहिए इसके अत्तिरिक्त आकर,विकास की स्थिति,सामाजिक एकता,शासन की सुविधा तथा राजनीतिक व्यवहारिकता पर ध्यान देना चाहिए| जहाँ तक सम्भव व व्यवहारिक हो उप-सांस्कृतिक क्षेत्रों की उचित आकांशाओं की पूर्ति की जाए, यदि उनका कोई बुरा प्रभाव राष्ट्रीय जीवन और संगठन पर न पड़ता हो| सरकार की नीति कुछ इस तरह होनी चाहिए कि सभी उप-सांस्कृतिक क्षेत्रों का संतुलित आर्थिक विकास सम्भव हो जिससे कि विभिन्न क्षेत्रों के बिच आर्थिक तनाव को भी कम किया जा सके | केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों को अधिक सौहाद्रपूर्ण बनाने के लिए दोनों ही पक्षों को इस तरह की नीति तथा आचार-सहिंता को अपनाना चाहिए कि पारस्परिक विश्वास न टूट जाए और ऐसे अवसर कभी न आएं कि उन्हें एक-दुसरे पर कीचड़ उछालने की आवश्यकता हो | संकीर्ण मनोभाव वाले स्वार्थी नेतागण इसी प्रकार की राह ताकते रहते हैं इन्हें राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखा जाए | संघर्षात्मक प्रादेशिकता की भावना को समाप्त कर उदार सहयोगी प्रादेशिक की भावना के प्रसार को बुलंद किया जाए | क्षेत्रवादी प्रवृतियां सयंमित और नियंत्रित रूप में रहें तथा क्षेत्रवाद और राष्ट्रवाद में सामंजस्य की स्थति सम्पूर्ण अंशों में बनी रहे |देश की एकता और अखंडता पर मंडराते क्षेत्रीयतावाद के खतरे से बचने के और भी उपाय हो सकते हैं लेकिन यह कहने में हम निसंकोच हैं कि अब यह समय की मांग हैं कि इनसे बचने के कारगर उपाय तलाश कराना देशहित में अत्यंत आवश्यक हैं|
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- शौकत अली खान
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