सुव्यवस्थित आयोजन एंव कार्यनीति से बाढ़ को नियंत्रित किया जा सकता हैं



नि:संदेह भारत अपने प्रोधौगिकीय विकास में लगातार आगे बढ़ रहा हैं , देश में अनेक उच्च स्तरीय तकनीकी का विकास हो चूका हैं लेकिन फिर भी देश को प्रकृति के कहर को नही भूलना चाहिए उसके आगे तकनीकी धरी रह जाती हैं |  भारत में हर वर्ष कई आपदाएं आती हैं जो सम्पूर्ण देश को झकझोर कर देती हैं |
 देश के गुजरात और पश्चिमी राजस्थान में आयी बाढ़ से सैकड़ों लोग काल के ग्रास बन गये हैं| बाढ़ प्राकृतिक आपदा हो सकती हैं | विकास प्रक्रिया के कतिपय दोषों के कारण इसका स्वरूप विकराल भी हो सकता हैं ,लेकिन इस पर नियन्त्रण करने का कार्य कठिन होते हुए भी ,दुर्जेय नही हैं | सुव्यवस्थित आयोजन एंव कार्यनीति को अपना कर ऐसी परिस्थितियां पैदा की जा सकती हैं कि बाढ़ एंव जल आप्लावन की स्थिति उत्पन्न ही न हो|
इससे पूर्व में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र भीषण बाढ़ की चपेट में आ चूका हैं और भारत में यह समस्या दिनों-दिन बढती जा रही हैं | भारत में नियमित रूप से आने वाली आपदाओं में बाढ़ एक प्रमुख आपदा हैं जिसका प्रभाव बड़े क्षेत्र पर पड़ता हैं| 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 23 राज्य बाढ़ की दृष्टि से अति संवेदनशील हैं | भौगोलिक क्षेत्र के दृष्टिकोण से देश का 1 /8 वां बहग या 40 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ के दृष्टिकोण से संवेदनशील हैं जिसमें से 8 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ से प्रभावित होती हैं |
खैर, यह तो प्रकृति की उपज हैं लेकिन समय रहते हुए इसका प्रबन्धन जरुरी हैं | सरकारों को इसके लिए एक रणनीति बनानी होगी जिसमें सम्भावित खतरेयुक्त आपदा की स्थिति या आपदा से विशेषज्ञ के रूप में निबटने के लिए अधिनियम के तहत गठित राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) का सामान्य अधीक्षण,निर्देशन और नियन्त्रण करते हुए राज्यों में सम्पूर्ण बाढ़ प्रभावित जिलों में विभागीय तथा अंतर राजकीय अभिकरण के सहयोग से दक्षिण पश्चिम मानसून का रेस्पांस प्लान की तैयारी की जाये |
  केंद्र के साथ राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न नदी घाटियों के लिए बाढ़ नियन्त्रण सम्बन्धी मास्टर प्लान तैयार किये जाने चाहिये ,पूर्व में किये गये मास्टर प्लानों को अधिक विस्तृत रूप दिया जाना आवश्यक होगा| आपदा के जोखिम को कम करने के प्रयासों को विकास के मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए | पंचवर्षीय योजनाओं (10वीं और11वीं )में स्पष्ठ रूप से ऐसा करने को कहा गया हैं परन्तु व्यवहारिकता इससे परे हैं|  सन 1954 में आयी भीषण बाढ़ के बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय बाढ़-प्रबन्धन कार्यक्रम की घोषणा की जिसके तीनो चरणों को मजबूत बनाते हुए पूर्वानुमान को प्रथम प्राथमिकता देनी होगी | राज्य सरकारों को बाढ़-नियन्त्रण निर्माण कार्यों का बड़े पैमाने पर कार्योत्तर मुल्यांकन किया जाना चाहिए | इन मुल्यांकन अध्धयनों के आधार पर प्रशासनिक तथा तकनीकी दोषों के बारे में सुधारात्मक करवाई की जाए| देश में मुख्यत जमीनी स्तर पर कार्य जिला स्तर व स्थानीय स्तर पर होता हैं जिसके लिए जिला प्रशासन से ग्राम पंचायत स्तर तक आपदा प्रबन्ध के लिए स्थानीय लोगो की टीम गठित की जाए तथा राहत सामग्री का भंडारण किया जाना उचित होगा|

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शौकत अली खान


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