मीडिया के सच्चे में धर्म ही लोकतन्त्र का बसेरा ...

चले चलों, कि वो मंजिल अभी बाकी हैं!।
क्यों राष्ट्र निर्माण ? जब राष्ट्र सनातन हैं ,तो उसका निर्माण क्यों? यहीं वो नाज़ुक नुक्ता हैं , जिस पर भारत की सारी व्याख्या निर्भर करती हैं। इस व्याख्या पर ही उसका समूचा भविष्य टिका हैं। यदि सनातन राष्ट्र होता ,तो कभी पराजित न होता । इसका गौरव कभी खोता नही। आज यह दुनिया का सबसे शक्तिशाली मुल्क होता । हजारों साल से इस भारत भूमि में एक राष्ट्र होने की संभावनाएं और परिस्थितियां दोनो रही, मीडिया का छाया बना हुए हैं यही नही कर्म भी निरन्तर हैं ।आखिर क्या हो भारतीय लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका?लोकतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार तो देता है लेकिन इस व्यवस्था में अधिकार के साथ-साथ कर्तव्य भी चलते रहते  हैं। लोकतंत्र अधिकार और कर्तव्य में असंतुलन की इजाजत नहीं देता। फिर मीडिया पर तो लोकतंत्र की पहरेदारी का भी जिम्मा है, जिससे उसे इस गंभीर दायित्व से मुहं नहीं मोड़ना होगा। मीडिया को मार्शल मैक्लूहान की बात "मीडियम इज मैसेज" हमेशा याद रखनी चाहिए क्योंकि इससे लोकतंत्र में सार्थक सूचना व संचार क्रांति आ सकती है।
मीडिया को खुद जज बनने की प्रवृत्ति से बचना होगा, क्योंकि लोकतंत्र में न्याय के लिए न्यायपालिका का प्रावधान है न कि खबरपालिका का। लोकतंत्र में मीडिया का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें दो मत नही कि भारतवर्ष में आजादी के पश्चात मीडिया ने लोकतांत्रिक संस्थानों को बलशाली बनाने और सत्तारूढ़ दल की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाने में सराहनीय भूमिका का निर्वाह किया है। परंतु इसके उपरांत भी ऐसे क्षेत्र भी हैं जिनमें लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ की भूमिका कहीं संदिग्ध सी या गरिमा के प्रतिकूल सी लगती है। आखिर कौन सी वजह है कि आजादी के 60 वर्ष बाद तक महिला जनसंख्या तक मीडिया की पहुंच काफी कम रही है। इसके कारण चाहे जो भी हो लेकिन इसे शुभ संकेत नहीं माना जा सकता क्योंकि लोकतंत्र में लिंग असमानता का कोई प्रश्न ही नहीं खड़ा होता। फिर मीडिया की यह प्रवृत्ति संविधान के खिलाफ भी है । खैर , अब तक यह कदम सराहनीय रहे है ।
यद्यपि भारत का महिला एवं बाल विकास विभाग स्त्रियों के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर में सुधार लाने हेतु सतत् प्रयत्नशील है और अनेक योजनाएं बनाता आ रहा है। अन्य शासकीय एवं अशासकीय तथा स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस दिशा में कार्य कर रही हैं किंतु जब से संचार माध्यम इस दिशा में सयि हुए हैं तभी से उल्लेखनीय परिणाम मिल रहे हैं। आज जितनी भी शासकीय योजनाओं की जानकारी दृश्य-श्रव्य माध्यमों द्वारा प्रसारित की जाती है, उनका व्यापक प्रभाव स्त्री वर्ग पर पड़ा है। अन्त्योदय योजनाएं राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और जननी सुरक्षा योजना सहित जाने कितनी योजनाओं की जानकारी सर्वहारा वर्ग की महिलाओं को है। यह प्रसन्नता की बात है।सरकार बालिका शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा और छात्रवृत्ति योजना के माध्यम से महिला साक्षरता बढ़ाने हेतु प्रयासरत् है। इसमें दूरदर्शन की अहम् भूमिका है। बालिका शिक्षा संबंधी कई विज्ञापन एवं कार्यम दिखाकर दूरदर्शन साक्षरता के प्रसार में सहयोग कर रहा है। कन्या भू्रण हत्या को रोकने के उद्देश्य से भी उसने महत्वपूर्ण कार्यक्रम दिखाए हैं और कन्या जन्म को प्रोत्साहित करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। महिलाएं संवैधानिक दृष्टि से तो अधिकार संपन्न हैं मगर यथार्थ में वे भेद-भाव, शोषण और उत्पीड़न का शिकार बनी हुई हैं।आज आवश्यकता है स्त्रियों को उनके अधिकार दिलाने की। उन्हें शिक्षित, स्वावलम्बी, मजबूत और अधिकार चेतना बनाने की। सरकार द्वारा महिलाओं के कल्याण हेतु कई कानून बनाए गए परंतु वे सभी कागजों में ही सिमटकर रह गए। जबकि इन कानूनों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है और दूरदर्शन, निजी चैनल व रेडियो के माध्यम से यह भलीभांति संभव है। इन्हीं माध्यमों से महिलाएं विवाह, दहेज, बलात्कार, संपत्ति अधिकार, समान वेतन, प्रसूति-सुविधा आदि के संबंध में आवश्यक जानकारी एवं दिशानिर्देश प्राप्त कर सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से सम्मानजनक स्थान पाने की कोशिश कर रही हैं।वर्तमान में संचार माध्यम महिलाओं के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। बाल विवाह अधिनियम की बात करें या पत्नी के भरण पोषण या विधवा गुजारा भत्ते की स्त्रियां जागरूक हो रही हैं। उन्हें महिला हिंसा कानून, समान वेतन कानून, गोद लेने संबंधी कानून और संपत्ति में स्त्री के अधिकार की जानकारी सहित ऐसे अनेक उपमों का ज्ञान है जो उनके जीवन को सही दिशा दे सकते हैं। अपने जीवन की विभिन्न समस्याओं को बेहतर ढंग से सुलझाने की क्षमता उनमें निरंतर विकसित हो रही है। वे प्रारंभ से ही मेधा संपन्न रही हैं, लेकिन उनमें जागरूकता का अभाव रहा है। आत्मविश्वास की कमी भी उनकी उन्नति के मार्ग का रोड़ा रही है। बहरहाल जिस तेजी से भौतिकता एवं प्रौद्योगिकी के पक्ष में स्त्री चेतना का विस्तार दृष्टिगोचर हो रहा है यदि उसी गति से स्त्री अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति सचेत हो सके तो समाज के अनेक ऐसे वलंत प्रश्नों का हल आसानी से मिल सकता है जिनका समाधान कानून द्वारा अद्यपर्यंत संभव नहीं हो पाया है। संचार माध्यमों की ईमानदार प्रतिबध्दता निश्चय ही महिला सशक्तिकरण के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ सकती है। सरकार को भी इस दिशा में सोचने की जरूरत है।
दलित, महिला एवं ग्रामीण विकास से मुंह फेरने की प्रवुत्ति से मीडिया को बचने की आवश्यकता है
राष्ट्र की एकता व अखंडता तथा मानवाधिकार के मुद्दों को स्थान देना होगा।भारतीय जीवन मूल्य व लोक संस्कृति को प्रवाहमान बनाए रखने की भूमिका का भी मीडिया को निर्वहन करना होगा।पर्यावरणीय चेतना जागृत करने और बहुसंख्यक समाज के सरोकारों को तवज्जो देना होगा मीडिया को।समाज के यथार्थ को यथावत प्रस्तुत करना, जो कि मीडिया का मूल धर्म है।। विकास के मुद्दों को उभारना और सकारात्मक ख़बरें छापना।आम आदमी की आवाज बनना और सबसे बड़ी भूमिका यह निभानी होगी जिससे भारत का लोकतंत्र मजबूत हो, सबको भागीदारी मिले और मीडिया के धर्म पर कभी सवाल न उठे।

- शौकत अली खान

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