प्रिय बापूजी
सादर वन्दन !
बापूजी ! मैं आपके बारे में जितना जानता हूँ यह मेरी आत्मा को संतुष्ट करता हैं
सारी कमियों को पूरा करता हैं | जब मुझे संदेह घेर लेता हैं,जब निराशा मुझे घूरने
लगती हैं और जब आशा की कोई किरण दूर-सुदूर तक नजर नही आती हैं,तब मैं आपकों पढ़
लेता हूँ और तब मेरे मन को असीम शांति मिलती हैं|
युगों बाद भारत की प्रज्ञा जिस महापुरुष के मुख
से मुखरित हुई हैं वो आप हैं | बापूजी ! मेरे भारत में आपका जन्म किस रूप में हुआ
हैं? सोचता रहता हूँ मैं हर वक्त दिन हो या रात| प्रेरणा की जलती यह लौह हमेशा
मेरे नाजुक दिल में जलती रहती हैं | मेरे अलावा मेरे पूर्वज आज आपका गुणगान करते
हैं और कहते हैं कि मुल्क किस परिस्थतियों में आजाद हुआ यह सारा कारनामा उस गाँधी
का हैं जिसने अहिंसा के इस छोटे से नासूर लफ्ज से मुल्क को आजादी दिलायी सिर्फ
आजादी ही नही बल्कि इस भारतीय समाज को नया दर्शन दिया हैं | तब से तुम्हारीं कहानियों के पन्ने उलटने लगा
हूँ और सुना हैं आजादी वैसी नही मिल पायी जैसी आप चाहते थे |आज आप तो चिरनिंद्रा
में सो रहे हो और रूह में हिंदुस्तान की आवाज बसी हुई हैं |
“किन्तु,क्या कहता हैं, आकाश? हृदय! हुलसों सुन
यह गुंजार!
पलट जाए चाहे संसार,न लूँगा इन हाथों तलवार!”
स्वंतन्त्रता के संघर्ष के दौरान लोगों ने आपको सुना,पढ़ा,सहमत-असहमत
हुए,आपका समर्थन किया,तो तीव्र विरोध भी हुआ | किन्तु जितनी श्रद्धा और प्रेम आपको
मिला ,उतना सम्भवतः विश्व में किसी भी अन्य व्यक्ति को नही मिला | आपने स्वदेशी और
चरके का प्रचार किया, अछूतोंद्धार आन्दोलन चलाया ,स्वयं जेल गये, नमक सत्याग्रह
किया, भारत छोड़ों आन्दोलन चलाया और अंग्रेजों के लिये असम्भव बना दिया कि वे भारत
को अपने अधीन रख सके| मगर इन सब बड़े कामों से भी बड़ा काम आपने यह किया कि भारत की
आत्मा के प्रति सारे संसार में श्रद्धा उत्पन्न कर दी | नि:संदेह आपके प्रतिभाशाली
व्यक्तित्व से मैं प्रेरित हूँ| इस दुनिया में जो आपसे उत्पन्न थे वो भी आपका
विरोध कर रहे थे यानि कि आपका विरोध वहीं कर रहे थे जो बिल्कुल आपसे उत्पन्न हुए थें
| बापूजी! वास्तव में आपकी जिन्दगी की हर एक घटना मुझे मनुष्य होने का एहसास कराती
हैं| आपकी हर एक अदा मेरे हृदय को छू जाती हैं|
आपके दो तरीके तो मुझें मेरे जीवन को आदर्श रूप
दे गये यथा अहिंसात्मक प्रतिरोध और रचनात्मक कार्यक्रम | यह दोनों कार्य एक दुसरे
के पूरक हैं| आप चाहते थे कि हर व्यक्ति अपनी तथा अपने आश्रितों की शारीरिक
आवश्यकताए अपने खुद के शारीरिक श्रम से पूरी करे जिससे कोई किसी का शोषण न कर पाए |
कोई किसी और की मेहनत पर न पलें | आप चाहते थे कि व्यक्ति अपने आपको ऐसे व्यवसाय
में लगाये जो शोषण व एकाधिकार पर आधारित न हो अथवा जिनमें शोषण,अन्याय,तथा हिंसा
की सम्भावना कम से कम हो ,लगभग न के बराबर | लेकिन इससे परे आज जो देश में अनहोनी घटनाएँ
होती हैं तो उदास मन में बेचेनी छा जाती हैं| पढ़ लेता हूँ मैं आपको और आपके
कार्यों की कल्पना करता हूँ|
आपका सर्वधर्म
समभाव हमें बहुत कुछ सीखा गया | आपने ऐसे भारत का सपना देखा जिसमें गरीब से गरीब
यह अनुभव कर सके कि भारत उसका अपना देश है| यहाँ तक आपके स्वराज्य में भी गरीब को
जोड़ा गया हैं| आपका पूर्ण स्वराज्य जितना किसी राजा के लिए होगा उतना ही किसानों
के लिए,जितना किसी धनवान जमीदारों के लिए होगा ,उतना ही भूमिहीन खेतिहर के
लिए,जितना हिन्दुओं के लिए उतना मुसलमानों, पारसी,सिख,ईसाईयों के लिए | उसमें
जाति-पांति,धर्म अथवा दर्जे के भेदभाव के लिए कोई स्थान नही होगा | बापूजी ! आप
इतना कुछ सिखा गये तो फिर आज के नेता यह सब कार्य क्यों नही कर रहे हैं ?
बेशक ! हिंदुस्तान गाँवो में रहता हैं
,गाँव ही इस मुल्क का जीवन हैं| गाँवो के सन्दर्भ में दी गयी आपकी प्रेरणा मुझे
ग्रामीण होने के नाते आपके फर्ज को निभाने के लिए जरा भी नही हिचकिचाती हैं| आप
कहते थे कि गाँव में हर तरह की सुविधा चाहे वह बिजली हो या पानी और अन्य मुलभुत
आवश्यकता | आप हमेशा कहते थे कि कृषि विकास नही हो तो देश स्वराज की कल्पना नही कर
सकता हैं और स्वराज मिल भी जाए तो इनके मध्य संतुलन रखना जरुरी होगा| आज जिस गाँव
की गोद में पल रहे हैं वो आपके विचारों की ही तो देन हैं | धन्य हो ऐसी आत्मा जिसके
हृदय में ग्रामीण जीवन के प्रति इतना प्रेम हो | गाँव की अर्थव्यवस्था को आपका
प्रोत्साहन और मशीनीकरण का विरोध करते हुए आप हमेशा कहते थे कि यदि मशीनों से देश
की गरीबी मिट सकती तो वे बड़ी से बड़ी मशीनों का प्रयोग का समर्थन करते | मशीनों से
पूंजी कुछ ही हाथों में केन्द्रित होकर रह जाती हैं जिसमें कुछ ही लोगो की पीठ पर
सवार होने से सहायता पहुँचती हैं | अतएंव मनुष्य के हड्डियों को चूसने का कार्य
मशीनों को नही दिया जा सकता| कितना सोचते थे आप हमेशा |
राजनीति
से लेकर समाज के हर स्तर पर सुचिता और स्वच्छता को लेकर आप बहुत ही सजग थे |
‘राजनीति इतनी महत्वपूर्ण नही हैं जितनी की स्वच्छता’ आपक यह प्रेरक वक्तव्य सिर्फ
मेरे लिए महत्वपूर्ण नही बल्कि सारे हिंदुस्तान और विश्वबिरादरी के लिए भी किसी
प्रेरणा से कम नही हैं | एक बार एक अंग्रेज अधिकारी ने आप से पूछा कि यदि आपको एक
दिन के लिए भारत का बड़ा लाडसाहब यानि वायसराय बना दिया जाए तो आप क्या करेंगे
?जवाब में आपने कहाँ कि राजभवन के पास जो गंदी बस्ती हैं मैं उसे साफ करूँगा| अंग्रेज
ने फिर पूछा मान लीजिए की उस पद पर एक ओर दिन रहनें दिया जाये| तब? आपका फिर वही
जवाब कि दुसरे दिन भी वहीं गंदी बस्ती साफ करूँगा|
बापूजी!
आपकी स्वच्छता के प्रति इतनी सजगता और आपने स्वराज को सीधे स्वच्छता से जोड़ा |
खूब! आप की अनवरत चलने वाली यह स्वपन दृष्टा मुझे अभिभूत करती हैं| मैं इसे मेरे
जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा मानता हूँ आज के नेता सता में आने के लिए आपके विचारों
का इस्तेमाल करते हैं लेकिन बापूजी मुझे बड़ा दुःख तब होता हैं जब यही नेता आपके
विचारों को दरकिनार करते हैं लोभ-लालच की राजनीति करते हैं |
आपके
अनेक नैतिक मूल्य जिनमें सत्यवादिता और पितृभक्ति ने मुझे हमेशा बड़ा प्रेरित किया
| कि मनुष्य कितना ही संकट में क्यों न हो उसे सत्य को नही त्यागना चाहिए आखिर में
रब उसकी मदद कर ही देता हैं| दूसरा- माता-पिता के प्रति प्रेम,वो तो मेने आपकी
जीवनी में पढ़ा तो मेरे आंसू ......बहने लगे कि मानों मैं मेरे माता-पिता को पढ़ रहा
हूँ |
स्वतंत्रता
के पश्चात देश का विभाजन हुआ मुझे वह आज भी दुःख देता हैं और मुझे लगता हैं कि आप
तक यह खबर नही पहुंची होगी | एक तरफ देश जल रहा था तो दूसरी तरफ आजादी, आपकी
अनुपस्थिति में स्वतंत्रता | बापूजी ! यह कैसा उत्सव,किसका उत्सव ,सब कुछ तो लुट
गया था | और आपने तो इतना तक कह दिया कि पहले मेरा देह बटेगा फिर यह देश |
काश! हर
हिन्दुस्तानी के दिल में जलती लौह को आप जैसी ‘पर’ लग जाए ....
“पानी और पसीने में
बड़ा अंतर होता हैं
पत्थर और नगीने में
भी बड़ा अंतर होता हैं
मुर्दा घड़ियों की
तरह श्वास लेने वालों
श्वास लेने और जीने
में भी बड़ा अंतर होता हैं |”
आपका -
शौकत अली खान
1 Comments
काबिलेतारिफ... वास्तव में बापू के नाम खत
ReplyDeleteहां यहीं तो बापू भी चाहते थे कि उनके सपनो के भारत में स्वराज्य स्वच्छता के साथ गाँवों का चहुंमुखी विकास हो तभी भारत विश्व में आदर्श,अनुकरणीय,अप्रतिम बन सकेगा | लेखनी को सलाम