दर्द का यह अंतहीन सिलसिला हर-रोज सिर्फ़ जगह बदलता है और करतूतें वही, मन के भीतर का रेगिस्तान राक्षसमय बंजर हो चुका है जिसको उपजाऊ बनाने के लिए बरसों लग जाएंगे .... एक सभ्य समाज मे यह कदापि बर्दाश्त नही है !!!


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