तहजीब का मुक्कमल नामा

हर बाशिंदा इस दुनियां में ख़ुद को रोशन करना चाहता है इस तरह की ता-उम्र  जिंदगी उसकी बेहतरीन गुजरे और आगे भी। यह भी सच्चाई है कि इंसान अपनी ख़ुद की हिफाज़त के लिए इंसानियत वाली तहज़ीब कभी-कभार ठुकरा जाता है जो शायद मेरे हिसाब से गलत है और होनी ग़लत होनी भी चाहिए।

हर इंसान अपनी संस्कृति से बेशुमार प्यार व लगाव रखता है चाहे उसे  ग़रीब के घर पैदाईशी मिली हो या फिर सम्पन्न के घर, बस ! ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए लगा रहता है रात-दिन लेक़िन उसके मन मे रत्ती भर भी यह ख़्याल नही आता कि उसके पड़ौस में कोई अपने मजबूरन वाले जीवन को जीवन बनाना चाहता है,यह सब सोचकर कौन वक्त बर्बाद करना चाहता है ...

लेक़िन ईश्वर/रब का इम्तिहान हर पड़ौसी के छाये से गुजरता है बस दुआओं की कमी से कभी-कभी वो निष्फ़ल हो जाता है।

मैं जहनी तौर पर मेरी पुरानी और प्रगतिशील परम्पराओं का कायल हूँ जिसका इतिहास सदियों तक अमर रहे। मैं जन्मा तब मेरी और पड़ौसी की तहजीब एक थी मैं सोचूं की अंत तक यह बनी रहे क्योंकि हर इंसानियत के दिल से यह फ़र्ज़ का रक्त वहन करता हैं।

 तहजीब की माना संस्कृति

©Shoukat Ali Khan 

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