डार्क हॉर्स - मृणाल Dark Horse -Nilotple Mrinal -Reviews


डार्क हॉर्स एक उपन्यास ही नही बल्कि एक समंदर है जहां नदी रूपी भटकती ज़िंदगियाँ आकर मिलती है ...

मुख़र्जी नगर नाम तो सुना होगा, वो वाला नगर जहां से शानों-शौक़त वाली जिंदगी तराशी जाती है जहां से देश के भावी अफ़सर बनने की रेस लगती है, आईएएस की तैयारी करवाने वाली संस्थानों की चकाचौंध ने इस भौतिक जगह को घेर रखा है,जहाँ देश के कौन कौन से सपनों को सँजोये युवा अपनी किस्मत को आजमाने आते है उसी में शायद डार्क हॉर्स का लेखक भी शामिल हो जाता है। तमाम तरह की उहापोह के मध्य लेखक को वहाँ का जीवन प्रभावित करता है और लेखक की साहित्यिक मोहब्बत उसको उस माहौल को कलमबद्ध करने को मजबूर करती है।

डार्क हॉर्स एक-अनकही दास्ताँ, नीलोत्पल मृणाल का एक उम्दा उपन्यास है। पढ़ना शुरू किया तो मैं अपने आप को मुखर्जी नगर दिल्ली में ले गया । सच मे कल्पना से परे हक़ीक़त की यह दास्ताँ पूर्णरूप मनोभाव से लिखी एक ऐसी कहानी है जिसमें सपनों को साकार करने की उलझनें नकारात्मकता की और धकेलती है। उपन्यास का पात्र सन्तोष मूलतः बिहार का रहने वाला विद्यार्थी है जो आईएएस बनने के ख़्वाब को पूरा करने के लिए दिल्ली जा पहुँचता है जब वह घर से रवाना होता हैं तो माँ कमला व पिता विनायक बड़े सपनों के साथ बेटे को विदा करते है।

"सिविल की तैयारी करने वाले लड़के को जब भी कोई पिता स्टेशन छोड़ने जाता हैं तो मानिए वह पीएसएलवी छोड़ने गया हो। खुशी,उत्साह,डर सम्भावना,सब तरह के भाव चेहरे पर एक साथ दिखते है।" उम्दा,मार्मिकता से भरा आशावादी कथन !

उपन्यास में वर्णित मुखर्जी नगर दिल्ली का दृश्य मेरे नजरिए से अकल्पनीय सा महसूस हो रहा है,क्योंकि जहां सपनो के केनवास पर सफलता की आकृतिया अक्सर धुँधली सी दिखाई पड़ती है। मृणाल जी की हकीकत की यह दास्ताँ  सिविल सेवा की तैयारी करने वाले उन लाखों नोजवानो को सिविल सेवा की तैयारी की तैयारी करवाती है जो नकारात्मक व ग़लत संगत के कारण या फिदायीनी दुनिया के चलते असफ़ल हो जाते है। खैर.! अभ्यर्थी  उपन्यास में वर्णित रास्ता नही चुनता लेकिन परिस्थितियां उन्हें लालायित कर देती है।

"सन्तोष सोचने लगा, कहाँ भागलपुर-साइकिल से टूनटून घण्टी बजाकर गणित और अंग्रेजी ग्रामर का ट्यूशन पढ़ने को जाता हुआ शहर और कहाँ देश-दुनिया के मसलों को समेट चाय की दुकान पर लाकर उसका पोस्टमार्टम करता हुआ एक सपनो का मुखर्जी नगर।"
सच कहा ! ग्रामीण पृष्ठभूमि से सपनो को पाल-पोषकर बड़ा करके उसका मूर्त रूप कही और दिया जा रहा है जो सन्तोष(उपन्यास का पात्र)को किसी भी रूप में पसन्द नही आ रहा है।

"मात्र मिनट भर में छाती के सारे बाल नीचे रखे अखबार पर गिर पड़े । सन्तोष एक अजब-सा भाव लिए खड़ा उन बालो को देख रहा था । इन्ही छाती के बालों का हवाला देकर गांव में साहस और हिम्मत की बात की जाती थी। एक बार खुद उसने पिता को कहते सुना कि हमारे छाती में बाल है, अभी !किसकी हिम्मत हैं जो हमारे खेत मे बकरी घुसा कर चरा दे! अभी वो सारी हिम्मत अखबार पर मुरझायी पड़ी थी।"
 सामंती सोच के आगे मुख़र्जी नगर की संस्कृति पलभर भी टिक नही पायी और गर्व से शरीर को सुदर्शन की भांति बना लिया। 'डार्क हॉर्स' वास्तव में कम शब्दों में समेटा एक समकालीन उपन्यास है।

वर्तमान के एकाकीपन ने हरेक स्टूडेंट्स को स्वकेन्द्रित, नीरस,मुरझाया हुआ बना दिया है और इस वाले जीवन मे वह सुख दुःख में स्वयं को भोगता है। लेखक ने जब इस हक़ीक़तपन वाला विषय चुना होगा तब मन मे इसको अंत तक पहुंचाने के लिए अनेक ख़यालात आये। मैं मानता हूँ कि विद्यार्थी जीवन एक असल जीवन की शुरुआत देने वाला युग है जहाँ से रफ्ता-रफ्ता बेहतरीन जिंदगी का कारवां चल पड़ता है और इसी भावनाओं और मंजर को पन्नो में ढालना लेखक ने उचित समझा।

साहित्यिक क्लिष्टता,भाषायी सौन्दर्य व मनोरंजन से परे जाकर ऐसी कृति कृत करना नीलोत्पल मृणाल जी के संवेदनशील लेखन की और सशक्त इशारा करती है। पुनश्च बधाई और अग्रिम कृति के लिए ढ़ेरो शुभकामनाएं ।

तेरे बदन की लिखावट में है उतार चढ़ाव
मैं तुझको कैसे पढ़ूं, मुझे किताब तो दे

!! जिंदाबाद मृणाल !!

प्रकाशक : हिन्द युग्म
उपन्यास - डार्क हॉर्स
लेखक - नीलोत्पल मृणाल

समीक्षक - शौक़त अली खान

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3 Comments

  1. सराहनिय समीक्षा

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  2. बहुत खूब कुछ शब्दयोग से ही उपन्यास का मर्म उकेरने की उम्दा कोशिस है।

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