हम सब एक ही रब की उपज

हम सब एक ही रब की उपज है और उसी के ही इशारे पर नाच करते है,उसी के इरादों पे पलते है,वो चाहे जैसे हमे करवाता है हम करते आये है, यह वो सब जानता है कि यह सब लोग मेरे अपने है.

यह बात तब प्रासंगिक हो जाती है जब कोरोनो जैसी वैश्विक भयंकर महामारी कहर बरपा रही हो और सिर्फ इंसान के मरने की खबरे आ रही हो,आंकड़े हिन्दू-मुस्लिम से परे इंसान के मरने की बात कर रहे हो, वरन सामान्य दिनों में तो हम हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई में बंटे होते है,उन्ही के गुणगान, लड़ाई-दंगे,वैचारिक महामारी में व्यस्त होते है.सियासत की गजलें गीता, कुरान,बाइबिल सुना रही होती हैं. मौत किसी भी की सगी नही होती,उसका अपना एक ही होता है वो है इंसान,बस वो उसकी ही भूखी होती है.

यह विचार तब आते है जब ठेठ गाँव में दस-पन्द्रह साल पुराने छपरे या झोपड़ी में सुरक्षित बीता रहे हो, सोने के चम्मच में खीर या दूध पीने वाले भला क्या जानते होंगे कि इंसान होने का आनंद कहा पर बैठकर लिया जाता है..

अपने आशियाने पर ही ठहरिए
हम मौतों से लड़ रहे है...

- शौक़त अली
#StayAtHomeAndStaySafe

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