देश कागज पर बना नक्शा नही होता

एक देश मे
जब एक किनारा जलता है
तब सारा देश तपतिश महसूस करता है

यह आग और यह पत्थर
यह गोलियां यह लाठिया
यह सभी जलाने व तोड़ने का काम करती है

यह प्रयोग कौन करता है
एक कुनबा नही और ना ही एक समाज
यह तो सिर्फ एक या दो व्यक्तियों के
मन मे उपजी हुई भनक और घृणा हैं
जिसे न उसको जान प्यारी होती है
और ना ही किसी की आन और बान

एक मंदिर के
एक हिस्से के टूट जाने से
सिर्फ मंदिर ही नही बिखरता
साथ-साथ उपजती है
शंका और घृणा भी
हजारों-लाखों व्यक्ति के मस्तिष्क में

एक मस्जिद के
गुम्बद के बिखरने से
सिर्फ मस्जिद ही नही
सारा कुनबा उसकी चपेट में आ जाता हैं
और यही से उपजती हैं घृणा और शंका

एक राष्ट्र के बनने में
बीत जाते हैं बरस और
गुजर जाती हैं सदिया
अनेकों विचारों
हजारों कल्पनाओं
करोड़ो आकांक्षाओं
सैकड़ों बलिदानों की
उपज होती हैं एक राष्ट्र

जमीन से लेकर आसमा तक कि
गवाही में बनती हैं एक राष्ट्र की
नीवं और उसकी संस्कृति

फिर भी धर्म और सियासत
अपने खेल में खेला करती हैं
राष्ट्र को नीचा दिखाने वाले खेल
इस खेल में विचारों से परे होती हैं
लाठिया,बंदूके और बारूद गोले
और होती हैं सिर्फ घृणा

इस खेल में चपेट में आता है
तो वो हैं आम-आदमी
जिसके जन्म के समय
दी गयी थी मुहब्बत रूपी गुटकी

                   -शौक़त

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