
लोकतंत्र का चोथा स्तम्भ कहे जाने वाला “मीडिया”आज उन उचाईयों पर है जिससे
की जनता भली –भांति रूबरू हो चुकी हैं | लोकतंत्र के सफल संचालन के लियें मीडिया
अर्थात् सोशल मीडिया की भूमिका महती होती जा रही हैं |
सोशल मीडिया के
जरिये आई जनता में इस असीमित शक्ति की चर्चा भी आज सम्पूर्ण संसार में चर्चा का
विषय बन चुकी हैं| वैज्ञानिकों,शोधकर्ताओं,मनोवैज्ञानिकों के द्वारा इनकी चर्चाए
आए दिनों होती जा रही हैं | विश्व का विकास तथा लोगो का लोकतंत्र तथा अपनी आवाज को
हाईकमान तक पहचानें का जरिया भी सोशल मीडिया के रूप में लिया जा रही हैं |
विश्व में होने वाले जन आंदोलनों
,तानाशाही का विनाश भी मीडिया के द्वारा किया जा रहा हैं | भारत में इसका जिक्र
करे तो अन्ना हजारे ,अरविन्द केजरीवाल ने सोशल मीडिया के बल पर अपने सामाजिक कार्यक्रमों
को उन परवान पर चढ़ा दिया कि उसका आमूल-चूल परिवर्तन हो गया हैं | जन आंदलनो तथा
लोगो को सुविधा रूपी सोशल मीडिया का प्रयोग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैं|
राजनीति में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है| आज हमारे देश में ऐसे नेता
मौजूद हैं जो सोशल मीडिया के बल अपनी ऊँचाइयों नापने लगे हैं “प्रशासन” अथार्त
परों पर शासन भी सोशल मीडिया का भोगी बनने के कगार पर हैं| सरकारे आज ई –प्रशासन को
बढ़ावा देने के लिए विभिन्न करतूत किये जा रही हैं, ई-प्रशासन से देश की सम्पूर्ण
प्रशासनिक व्यवस्था सोशल मीडिया के रूप में जुड़ चुकी हैं | लोगो के कार्यों
सम्पादित करने के लिए प्रशासन इन्टरनेट से जुड़ने जा रहा हैं |विज्ञान का सोशल
मीडिया रूपी वरदान परम-दर्शनीय हैं |
अंत में हम अपने मूल विषय पर
आये तो बात करेंगे कि सोशल मीडिया की यह सुनामी कितनी भयंकर हैं यह आने वाले समय
में बताया जायेगा
सयोंग वश पिछले एक दशक के दौरान घटित
हुए जन-क्रांतियाँ लोकतान्त्रिक बदलावों सुनियोजित दंगा फसादों की वारदातों और
हानिकारक घटनाओं ने दोनों परिभाषाओं की पुष्टि हैं| इन्टरनेट और दूरसंसार माध्यमों के जरिये एक दुसरे से अद्रश्य तरीके से जुडी
लाखों करोडो लोगो की भीड़ की दिशा नकारात्मक भी हो सकती हैं तथा सकारात्मक भी जिसका
उदहारण लीबिया ,मिस्र में हुआ ,सत्ता परिवर्तन सोशल मीडिया के बल पर राजतंत्रात्मक
,तानाशाही शासन को जड़ से उखाड़ फैंका ,जो सराहनीय था| लोगो की भीड़ कब सकारात्मक
रहती हैं तथा कब नकारात्मक|
इसका अंदाजा हम उत्तरप्रदेश के
दादरी इलाके बिसाड़ा गाँव में सोशल मीडिया की अराजकता का जरिया बनते हुए देखा हैं |
सन्देश का प्रसारित करने के ऑनलाइन और ऑफ़लाइन माध्यम साथ जुटकर एक अकेले इन्सान को
सबक सिखाने के लिए सैकड़ो लोगो की उन्मादी भीड़ तैयार कर देते हैं तथा सोशल मीडिया
एक मानव की मौत का कारण बन जाता है| वह अराजकता की पराकाष्ठा को जन्म दे देता हैं|
पिछले साल हुए मुजफ्फरनगर के दंगो
को हवा देने में जिस तरह असामाजिक तत्वों ने सोशल मीडिया का खुलेआम दुरूपयोग किया
,वे भी इस बात का पर्याप्त प्रमाण पेश कर चुके हैं कि जिन तकनीकि सुविधाओं का विकास
आम आदमी को सशक्त बनाने के लिए किया गया उन्हें उसी आदमी के खिलाफ इस्तेमाल करना
कितना आसान हैं तकनीकि के पास शक्ति तो अवश्य हैं लेकिन उसके पास अपना विवेक नही
होता हैं,विवेक यदि हैं या नही तो उसके पर्योक्ता के पास |
मुजफ्फरनगर के दंगे इसलिए भडके थे
कि क्योंकि वहा पाकिस्तान में भीड़ द्वारा कुछ लोगो को मार डालने का वीडियो क्लिप सोशल
मीडिया पर वायरल हुआ और वह इतनी तेजी से हुआ कि चंद पलों में हजारों के पास पहुंच
गया तथा बेकसूरों की मौत का कारण बन गया तथा इस वीडियो की जमीनी हकीकत कुछ ओर ही
बयाँ करती थी लेकिन सोशल मीडिया में इसका रूप कटू सत्य के रूप में उभरा तथा नई
जठराग्नि को जन्म दिया | लेकिन सोशल मीडिया का इस उद्धेश्य के लिए तो नही हुआ था
कि वह तो हमारी साझा शक्ति का उदगोष करने वाला औजार था ,वह तो हमारे बीच दूरियाँ
खत्म करने वाला विश्वग्रामी सपना था ऐसा विश्वग्राम जिससे सभी नागरिकों को समान
अधिकार प्राप्त हो ,जहाँ हर व्यक्ति को समान दर्जा मिला हुआ हो ,जहा हर व्यक्ति के
लिए सम्मान हो लेकिन सामाजिक जीवन की बुराईयों ने सोशल मीडिया को विध्वंस का
हथियार बना दिया हैं |
यदि किसी नदी के पानी को रोककर उस पर
बांध बना दिया जाये तो उससे आसपास के खेतों में सिंचाई कर सके तथा भूख मिटा सके
,लेकिन अगर रात को उस पर बाढ़ के समय बांध
के दीवारों को ध्वस्त क्र दे तो धरती पर सोना उपजाकर जीवनदान देने वाले सैकड़ों
लोगो के जीवन लेने वाली विभीषिका में
पूर्णरूप से तब्दील हो सकता हैं
कटू सत्य यह हैं कि सोशल मीडिया
की अनियंत्रित प्रकृति से कितनी अराजकता फैलती हैं तथा बेकसूर मासूमों की मौतों भी
इसी कारण से होती हैं | बाल शोषण,ब्लॉग हैक तो कभी दुष्कर्म जैसी निंदनीय घटनाएँ
जो मानव जीवन को गड्ढे में धकेलती हैं वे भी इस सोशल मीडिया रूपी घटनाओं से
कालकवलित होती हैं|
यदि सोशल मीडिया सुनामी
का रूप धारण कर महामानव के जीवन में पैर धरे तो इसका परिणाम समुद्र में आने वाली
सुनामी से कई गुना भयंकर होगा हमने विज्ञान को वरदान व् अभिशाप के रूप पढ़ा तो कई बाते
अथार्त तथ्य ऐसे उभर कर आते हैं जिससे की मानव का जीवन उन कष्टमयी दुखों से भरा
हैं एंव उसकी मौत का कारण कई न कई सोशल मीडिया जिम्मेदार नही ठहरे |
Mob.9649797324
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