न्याय में फिर संघर्ष की आवाजे....





तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में जजों और वकीलों के आवंटन के लिए जो बहस छिड़ी हैं ,वह विचारणीय हैं | आए दिनों दिनों देश की न्यायपालिका में जो किलकारियाँ गूंज रही हैं,यह देश की आदर्श न्याय के लिए चुनौती हैं ,इसमें प्रत्यक्ष एंव अप्रत्यक्ष रूप से हानी देश की जनता को हैं,लोकतान्त्रिक देश में आन्दोलन और समाधान दोनों का तरीका हमेशा प्रजातांत्रिक होना चाहिए | तेलंगाना के 200 जजों का सामूहिक हड़ताल पर जाना निंदनीय हैं |संवैधानिक प्रावधानों के तहत इसमें केंद्र का हस्तक्षेप उचित हैं| नए राज्य के रूप में तेलंगाना का उदभव भी केंद्र ने किया तो फिर नए उच्च न्यायालय के बारे में फैसला केंद के द्वारा क्यों नही | देश का न्याय जब आन्दोलन की ओर रुख कर ले तो यह कल्पना से परे हैं, क्योंकि न्यायपालिका पर जो देश की जनता का विश्वास हैं, वो अन्य संस्थाओं ,संगठनों से कई गुना अधिक हैं| देश में अन्य मुद्दो की तरह इसका राजनीतिकरण अनुचित हैं| अदालतों में होने वाले आन्दोलन से आम-आदमी को नुकसान नही होना चाहिए| राज्य सरकारे एव न्यायालय आपसी सहमती के साथ भी इस समस्या का समाधान कर सकती हैं| देश की न्यायिक सक्रियता पर आए इस रोड़े का समाधान अतिशीघ्र होना चाहिए|

- शौकत अली खान 
E-mail:- shoukatjalori786@gmail.com

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