बात हुकूमत ! सियासत ! संविधान! स्वतन्त्रता ! सुरक्षा ! बेटियो से जुड़ी सैकड़ो योजनाओं कि है जिसके नाम पर सियासत बनाई जाती है और वाहवाही लुटाई जाती है....सत्ता की रोटियां सेकी जाती है इन सबके बीच दरिंदगी की घटनाएं तो हर दिन घटती रहती है लेकिन कुछ दर्दनाक ही सुर्खियों में रहती है और बाकी अन्य इन योजनाओं में लुप्त हो जाती है मुद्दे को सांप्रदायिक रंग दिया जाता और लिया भी जा रहा है जो खोखली मानसिकता हैं ।
किसी भी धर्म मे दरिंदगी को मान्यता नही है इसलिए सोशलमीडिया के अंधेपन का शिकार मत होइएगा।
वो दरिंदे किसी ना किसी बहन के भाई होंगे ,किसी ना किसी माँ के बेटे ... हैवानियत के छींटे उनके घरों को भी बदनाम कर गए होंगे जब वो घरो की और लोटे होंगे ...
सवाल यह है कि क्या देश को बेटियों की सुरक्षा में उलझा लिया जाए? या न्याय की परिभाषा को बदल दिया जाए .....
मातृशक्ति की अस्मिता हमारे लिए अहम हैं ।
"ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई " रज्मी की यह पंक्तियों हमारे भविष्य को गहरा धक्का देगी ...!!
काश ! थम जाए दर्द का यह अंतहीन सिलिसिला ...

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© Shoukat Ali Khan
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