राजतन्त्र, लोकतंत्र, लाठीतन्त्र.......
जेएनयु बदनाम है नाम से भी और काम से भी, सिलसिला जारी है,जेएनयु में पढ़ने वाला हर स्टूडेंट्स इसी में उलझा हुआ है और पीड़ित भी है. सत्ता जब चरम पे होती है तब जेएनयु का इस्तेमाल होता है....
कल फिर जेएनयू बदनाम हुआ इसलिए कि जेएनयू के हॉस्टल में घुसकर अज्ञात लोगों ने लाठियां बरसाई गयी छात्रसंघ अध्यक्ष समेत कई जेएनयु छात्र गम्भीर रूप से घायल हुए...
शिक्षा संस्थाये जब राजनीति के केंद्र बनती है तब उसमें पढ़ने वाला हर शख़्स स्वंय कैरियर के बारे चिंतित होने लगता है.
देश मे जब चुनाव होते है तब जेएनयु मीडिया के सुर्खियों में होता है,आखिर यह संस्था बदनाम क्यों है? क्या इसकी शिक्षण व्यवस्था सत्ता को देशविरोधी लगती है? क्या राजनीति समझ चुकी है कि उनकी सफलता और विफलता जेएनयु तय करती है? क्या इसमें पढ़ने वाले छात्र देश की दिशा व दशा तय करते है?
वैश्विक चिंता अब देश की दशा से तय होने लगी है. कब समझेगी यह सत्ता और यह राजनीति.
जेएनयु का बदनाम होना देश की बदनामी है...
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