सूरज ..
जब ढ़लता है
होता है दिन भर का मुसाफिर
इस जहाँ में कौन नही बनता मुसाफ़िर
सूरज
एक मौन इश्तिहार है
इस जमाने की महफ़िल का
किसने गुनाह किया,
कौन तलब में है यहाँ
यह सब लेकर ढ़लता है सूरज
कौन क़ैद में किसकी रिहाई होनी है
यह सब बयान लेकर छिपता हैं
सुबह उसे फिर उगना हैं
इसी तड़फ से ढ़लता हैं सूरज
कोई क्या जाने इसके वजूद को
यह दिन के देखे गए करतुत
रात को अपनी इबादत में लिखा करता है.
- शौक़त
जब ढ़लता है
होता है दिन भर का मुसाफिर
इस जहाँ में कौन नही बनता मुसाफ़िर
सूरज
एक मौन इश्तिहार है
इस जमाने की महफ़िल का
किसने गुनाह किया,
कौन तलब में है यहाँ
यह सब लेकर ढ़लता है सूरज
कौन क़ैद में किसकी रिहाई होनी है
यह सब बयान लेकर छिपता हैं
सुबह उसे फिर उगना हैं
इसी तड़फ से ढ़लता हैं सूरज
कोई क्या जाने इसके वजूद को
यह दिन के देखे गए करतुत
रात को अपनी इबादत में लिखा करता है.
- शौक़त
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