डायरी

हम जिस रूप में सामने आ रहे है वो बड़ा विभत्सकरी है,सभ्य और असभ्य में कोई फ़र्क नजर नही आता दिख रहा है. जब मनुष्य ने जन्म लिया तब उन्हें ईश्वर ने जो अता किया वो था जानवर और इंसान में  'फ़र्क'

वजूद का बदला,चंद ख्वाहिशेंऔर दर्दनाक कृत्य एक साथ नही चल सकते गर आप दर्दनाक सन्देश देना चाहते हो तो आप जानवर की श्रेणी में शुमार हैं, कोई आपको इंसान नही कहेगा.

पैदा हुए तब कोई भेद ना था एक बड़ी जात थी वो है इंसान,इसके सिवाय कोई कुछ भी नही था लेकिन समय के साथ इंसान बाँट दिया गया.

गर आप चाहते हो कि निर्णायक और न्यायकारी स्वयं बने तब अदालतों से कह दो कि तुम्हारी कोई जरूरत नही,व्यवस्था को यह पैग़ाम भेज दो कि यह क्या नाटक बनाकर रखा है.

रोएगा जब भीतर का शैतान
न मिट्टी साथ देगी न आसमान और ना ही इंसान
तुम चाहते हो ना किसी का खून
तुम्हे मिलेगा खून के बदले यह पैग़ाम
नही तुम्हारी जरूरत
ना ही तुम्हारी दौलत ना ही तेरा काम
तुझसे बदला लिया जाएगा
शैतान और हवशिपन का
तुम निकाल दिए जाओगे
सभ्य समाज से,उन घरों से भी
जहाँ रोटी पकती है इंसानियत के बूते।

 -- Shoukat Ali Khan

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