शायद ! तुम नही जानते होंगे कि एक फेक न्यूज़ लाखों-लोगों के जीवन को सीधा सा प्रभावित करती हैं,उनका गुनाह बस यही होता हैं कि उन्होंने आपकी बनाई खबर पे आँखें-मूंदकर विश्वास कर लिया होता है...!!
सुख में दर्द भरी खबरें थोड़ा सा ही ध्यान भटकाती है लेकिन दुख में ही दुःखद घटनाएं कभी-कभार मनोस्थिति ही बदल देती है.लॉकडाउन के दौरान जब कभी-कभार टीवी के माध्यम से न्यूज़ चैनल से समाचार तथा राष्ट्रीय स्तर के जनर्लिस्ट लोगो की प्रतिक्रिया देखता हूँ तो सोचने लगता हूँ कि देश को सैकड़ो बरस पीछे धकेलने के मश्विरे न्यूज़ रूम में बैठे लोगों से ही तय होंगे. कुछ जर्नलिस्ट सही लिखने व बोलने की ताक़त रखते हैं उनको दबा दिया जाता है.
मीडिया ! वही मीडिया जो जमीनी स्तर पर गुड वर्क का श्रेय ले रहा हैं दूसरी ओऱ राष्ट्रीय स्तर के कुछेक चैनल अपने अस्तित्व को खोने के कगार पे है. हाँ ! एक बात और सिर्फ मेरे कहने या आंकलन करने से किसी का अस्तित्व खतरे में नही आ जाता.
मजहबी द्वंद्व,एक धर्म विशेष की भावनाओं के खिलाफ जाकर दूसरे धर्म से वाहवाही बंटोरना,फेक न्यूज़,टीआरपी के चक्कर मे फेक वायरल को बढ़ावा देना,भड़काउ डिबेट,दल विशेष या राजनेता विशेष के ख़िलाफ़ माहौल तैयार करना,यह सभी अनुभव तथा आंकलन मेरा व्यक्तिगत है पिछले दस-पन्द्रह दिनों में मेरी विशेष नजर का परिणाम हैं.
जब पीआईबी किसी एक राष्ट्रीय चैनल को ट्वीट में टैग करते हुए वार्निंग देती है कि यह फेक न्यूज़ हैं और शहर की पुलिस कमेंट कर कहती है कि तुम्हारें ख़िलाफ़ कारवाई की जाएगी तब आम-आदमी जो घरों में कैद है तथा हर एक तथ्यात्मक न्यूज़ की आशा करता हैं वो इन चैनल्स पर विश्वास कैसे करेगा??
हा ! मैं सारे मीडिया जगत को नही नकार रहा हूँ न ही सारे जर्नलिस्ट लोगो को बेतुका कह रहा हूँ; जमीनी स्तर पर काम करने वाले कुछ पत्रकार आज भी समाज सेवा के लिए जाने जाते है; विश्वास उन्ही पत्रकारों तक सीमित रह गया है जो गरीब के झोपड़े की जलने की खबर छापकर नेताओं तक पहुंचाते हैं फिर उनको मुहावजा दिलाते है.
एक पत्रकार का असल राष्ट्रवाद शायद यही है कि उसके कर्तव्य व तथा उसके पत्रकारिता धर्म पे दाग नही लगे,वरन सूचनाओं का भंडार तो आजकल सोशल मीडिया पे छाया हुआ है,तुम क्या पहुँचाओगे आमजन तक सूचना?
राष्ट्रीय पत्रकारिता आयोग बने,जर्नलिज्म के लिए प्रोफेशनल डिग्रियों हेतु कठोर इम्तिहान से गुजरना पड़े तब जाकर राष्ट्रीय स्तर के न्यूज़ चैनल रूम में बैठकर खबरे सुनाने का अवसर मिले!
सतर्क रहें ! स्वस्थ रहे !
- Shoukat Ali Khan
सुख में दर्द भरी खबरें थोड़ा सा ही ध्यान भटकाती है लेकिन दुख में ही दुःखद घटनाएं कभी-कभार मनोस्थिति ही बदल देती है.लॉकडाउन के दौरान जब कभी-कभार टीवी के माध्यम से न्यूज़ चैनल से समाचार तथा राष्ट्रीय स्तर के जनर्लिस्ट लोगो की प्रतिक्रिया देखता हूँ तो सोचने लगता हूँ कि देश को सैकड़ो बरस पीछे धकेलने के मश्विरे न्यूज़ रूम में बैठे लोगों से ही तय होंगे. कुछ जर्नलिस्ट सही लिखने व बोलने की ताक़त रखते हैं उनको दबा दिया जाता है.
मीडिया ! वही मीडिया जो जमीनी स्तर पर गुड वर्क का श्रेय ले रहा हैं दूसरी ओऱ राष्ट्रीय स्तर के कुछेक चैनल अपने अस्तित्व को खोने के कगार पे है. हाँ ! एक बात और सिर्फ मेरे कहने या आंकलन करने से किसी का अस्तित्व खतरे में नही आ जाता.
मजहबी द्वंद्व,एक धर्म विशेष की भावनाओं के खिलाफ जाकर दूसरे धर्म से वाहवाही बंटोरना,फेक न्यूज़,टीआरपी के चक्कर मे फेक वायरल को बढ़ावा देना,भड़काउ डिबेट,दल विशेष या राजनेता विशेष के ख़िलाफ़ माहौल तैयार करना,यह सभी अनुभव तथा आंकलन मेरा व्यक्तिगत है पिछले दस-पन्द्रह दिनों में मेरी विशेष नजर का परिणाम हैं.
जब पीआईबी किसी एक राष्ट्रीय चैनल को ट्वीट में टैग करते हुए वार्निंग देती है कि यह फेक न्यूज़ हैं और शहर की पुलिस कमेंट कर कहती है कि तुम्हारें ख़िलाफ़ कारवाई की जाएगी तब आम-आदमी जो घरों में कैद है तथा हर एक तथ्यात्मक न्यूज़ की आशा करता हैं वो इन चैनल्स पर विश्वास कैसे करेगा??
हा ! मैं सारे मीडिया जगत को नही नकार रहा हूँ न ही सारे जर्नलिस्ट लोगो को बेतुका कह रहा हूँ; जमीनी स्तर पर काम करने वाले कुछ पत्रकार आज भी समाज सेवा के लिए जाने जाते है; विश्वास उन्ही पत्रकारों तक सीमित रह गया है जो गरीब के झोपड़े की जलने की खबर छापकर नेताओं तक पहुंचाते हैं फिर उनको मुहावजा दिलाते है.
एक पत्रकार का असल राष्ट्रवाद शायद यही है कि उसके कर्तव्य व तथा उसके पत्रकारिता धर्म पे दाग नही लगे,वरन सूचनाओं का भंडार तो आजकल सोशल मीडिया पे छाया हुआ है,तुम क्या पहुँचाओगे आमजन तक सूचना?
राष्ट्रीय पत्रकारिता आयोग बने,जर्नलिज्म के लिए प्रोफेशनल डिग्रियों हेतु कठोर इम्तिहान से गुजरना पड़े तब जाकर राष्ट्रीय स्तर के न्यूज़ चैनल रूम में बैठकर खबरे सुनाने का अवसर मिले!
सतर्क रहें ! स्वस्थ रहे !
- Shoukat Ali Khan
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