किसान आंदोलन और हिंसा !



जब गण का तंत्र जवान, किसान और लोकतंत्र में उलझने लग जाए तब देश के राष्ट्रीय आंदोलन की यादें ताजा होती हैं. उस वक्त अंग्रेजी जुल्म के बावजूद भी अहिंसक सत्याग्रह,विरोध व धरने हुए वो भी एक दमनकारी अंग्रेजी शासन के ख़िलाफ़, हम अहिसंक लड़े,मरे और फलतः हमें आजादी मिली.

राष्ट्रीय आंदोलन के नायकों की मूर्तियाँ लगाना सच्ची श्रद्धांजलि नही है बल्कि उनके विचारों को अपनाना ही उनकी विरासत को संजोने जैसा है.

अब अफ़सोस यह है कि लोकतांत्रिक शासन,अधिकार,कर्तव्य और राष्ट्रवाद  सिर्फ सैद्धांतिक बातें बनकर रह गयीं हैं, व्यवहार में हम क्रूर होते जा रहे. यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.

लोकतंत्र की अस्वीकृति एक सभ्यता का अंत होगा, सारा विश्व स्वीकार करता है और मानव जाति इसे मान्यता देती है.

शासन व प्रजा के बीच गर सामंजस्य की कमी हो तो न्यायपालिका का हस्तक्षेप स्वाभाविक हो जाता है.


-शौक़त


#KisanAndolan  #DelhiFarmersProtest

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